प्यार और करियर: एक विरोधाभास

क्या सच में दोनों एक दुसरे के आमने सामने लड़ाकू की तरह खड़े है और हर औरत को किसी भी समय इन दोनों में से एक को चुनना होता है? यह चुनाव ज़िन्दगी में एक या दो बार नहीं, अपितु हर शाम, हर वीकेंड, हर महीने में कुछ दिन तो करना ही पड़ता है।

ओफ्फो अबला नारी।

क्या दोनों में co-existence नहीं हो सकता? हाहा, शायद भारत देश में नहीं। जहाँ परंपरा ने औरत को आज तक नहीं छोड़ा है और हर मोड़ पर प्यार को सेवा, इज़्ज़त, परिवार और perfection के साथ जोड़ कर प्यार को इतना बोझिल बना देती है। परंपरा की बेड़ियाँ इतनी मज़बूत है की औरतों के पास सिर्फ दो ही response है। प्यार और करियर में से एक की क़ुरबानी।इस प्यार और करियर की dichotomy को तोड़ने के लिए- या तो परंपरा की बेड़ियाँ अपने पैरों में और कसवा लो, या फिर करियर को इतना तवज्जो दो, की प्यार सेकेंडरी ही रहेगा।

इन दोनों extremes के बीच के responses अक्सर रिकॉर्ड नहीं होते। या ये भी होता होगा की balanced life एक myth है, या जो लोग कहते है की वें दोनों को बैलेंस करते है, मेरे हिसाब से वें लोग mediocre केटेगरी में ब्रांडेड होने के खतरे से गुज़रते है।

इसके पहले की इस पर कुछ और बात करें, एक सवाल मन में उठता है।भारतीय मर्द इस विरोधाभास को कैसे handle करते है? उनके लिए शायद ये विरोधाभास है ही नहीं।सदियों से इन दोनों को जीते हुए उन्होंने अपने शायद अपने नियम कायदे बना लिए है, अपने responses के विविध आयाम भी तय कर लिए है, अपने DNA और upbringing में स्थापित कर लिए है। इस बात की तो दाद देनी पड़ेगी मर्दों को।

ये मैं क्यों लिख रही हूँ? क्यूंकि मुझे लगता है की प्यार और करियर में चुनकर के चक्कर में औरतों के पास सिर्फ दो ही responses रह गए है। फिर उसी बाइनरी में फँस कर फेमिनिज्म को और खोखला कर सकते है।

पहली बात तो इन दोनों में से किसी एक को चुनने की नौबत आनी ही नहीं चाहिए। ऐसा कहते है की हमारी ज़िन्दगी हमारे choices का परिणाम है। तो अगर हमारी choices में से एक का त्याग करना होता है, तो बहुत ही साफ़ है की हमें उसकी ज़रुरत नहीं है। तो फिर उसको ऐसे ही ज़ाहिर करना चाहिए, ताकि दोनों को binaries में बिठाकर दोनों का ही अपमान ना हो। एक दोस्त ने कहा था, "तुम्हारी शादी नहीं हो रही क्योंकि तुम करना नहीं चाहती"।

करियर और प्यार में से किसी एक को तवज्जो देना हमारे upbringing का भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है। हमारे माता पिता और रिश्तेदारों को इसका श्रेय अथवा इलज़ाम देना चाहिए। जो औरतें अपनी ज़िन्दगी में प्यार और करियर का सही तालमेल बैठकर खुद भी बहुत खुश रहती है, उन्हें समाज में firebrand और kickass समझा जाता है।

फिर सोचती हूँ, मेरी जैसे औरते कहा फिट होती है इन सब में? करियर को इतना भाव नहीं दे सकती हूँ मैं, पैसे कमाने का एक जरिया मात्र है मेरे लिए करियर। मेरे वजूद का एक हिस्सा हो सकता है, मेरा वजूद नहीं। एक दोस्त ने कहा, "तुम तो मज़े कर रही हो, तुम एक जगह फोकस्ड नहीं हो। बढ़िया है"। If I can afford to do so  many things that I like to, and still make money without getting labelled, I should be bloody good।

मेरा फोकस है ज़िन्दगी जीना, प्यार के विभिन्न पहलुओं को experience करना, मेरा फोकस है हर वो चीज़ करुँ, जो मुझे पसंद है, और उसमे perfect  बनू, ताकि मन करें तो पैसे भी कमा लू कभी। कोई भी समाज के definition में बिना बंधे हुए। ये बात अलग है की मैं firebrand  और kickass नहीं कहलाउंगी। क्योंकि मैंने करियर नहीं चुना है। मैंने प्यार भी नहीं चुना है। हां, मैं पैसे वाली नहीं हूँ, फेमस भी नहीं हूँ, बहुत सोती हूँ, बहुत सपने देखती हूँ, बहुत खाना खाती हूँ, मेरे डॉग्स के साथ खुश रहती हूँ, बहुत सोचती हूँ और कभी कभी लिखती हूँ।

एक गुज़ारिश जितनी feminist मर्दों से है यहां पर, जितनी patriarchy  सपोर्ट करने वाले मर्दों से, की एक डिब्बे में हमें बंद ना करें। करियर और प्यार binaries नहीं होने चाहिए, दोनों साथ चल सकते है, यह आप को आपके language में और sensitively इस्तेमाल करना चाहिए। एक किस्म की औरत stereotype को सपोर्ट करने के चक्कर में आप multiple meanings of वोमनहुड और उन औरतों की आवाज़ों को encourage  नहीं कर रहे है।

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