ज़िम्मेदार

 एक बार फ़िर मौक़ा मिला ज़िम्मेदारी उठाने का। एक बार फ़िर मैं भाग गई। हा, तुमने सोचा होगा, तुम तो हो ही ऐसी। अगर ज़िम्मेदार होती तो शादी करती, बच्चे पैदा करती, एक जगह नौकरी करती, एक जगह टिकी रहती। हा, मैंने फ़िर से तुम्हें निराश नहीं किया, मैं भाग आयी। अब मेरा पीछा छोड़ दो थोड़ी देर के लिए, मुझे कहने दे अपने मन की बात, या फ़िर निकालने दे अपनी भड़ास।


ये तो पता है की ज़िममेदारी किसी को भी नहीं पसंद, और ये हमेशा थोपी जाती है, फ़िर लोगों को मज़ा आने लगता है, ज़िम्मेदारी उठाने में। ज़िन्दगी यूं ही निकल जाती है। मुझे भी अच्छा लगता है अब। इन बच्चों की ज़िम्मेदारी ज़िम्मेदारी नहीं लगती है, वो तो प्यार है। 


पर ज़िम्मेदारी का भी तो एक संदर्भ होता होगा, कुछ नियम, कानून, इंसेंटिव होता होगा। एक दिन ऐसे ही कोई उठ कर बोल सकता है कि ज़िम्मेदारी ले लो। पहले इतनी बार मिन्नते की कि दो दिन और रहने दो इनको मेरे पास, लेकिन तुम ट्स से मस न हुए। मुझे भाग कर निश्चित समय पर ले कर आना पड़ा तुम्हारे पास। 


इस बार भी तुमने ऐसी ही किसी दुविधा में डाल दिया। मैंने मना तो कर दिया है तुम्हे की मैं नहीं ध्यान रख पाऊंगी बच्चों का, लेकिन इसके बाद जो कुछ भी मैं सोच रही हूं, वो सारी बातें तुम मुझमें डाल रहे हो। जब मैं फ़िर से तुमसे बात करना चाहती हूं, तो तुम मेरे पैसे ना कमाने की बात को बीच में ले आते हो। पैसा हमारे बीच कभी नहीं आया था, तो अब ऐसा क्या हो रहा है, जो मैं इतना सोच रही हूं अपने इस कर्म पर।


तुम मर्द हो, तुम एक बार क्या, पांच बार मुझे अपने कर्मों के लिए, बिना खुद के दोष को स्वीकारते हुए, मुझे अपनी खुशी और चॉइस के बारे में खराब तो लगाओगे ही। तुम्हारी मर्दानगी कैसे बरकरार रहेगी?


लेकिन मैं सिर्फ तुमको इस नज़रिए से नहीं देखना चाहती। जानती हूं कि बच्चों को दिक्कत होगी, और तुमको भी, और तुमने सोचा होगा कि मैं तो लपक लूंगी इस मौक़े को। पर मैं तो भाग आयी। 


देखो तो, मेरा गिल्ट ट्रिप इतना प्रचंड है कि हर बार मैं अपने चॉइस को भाग जाना कहती हूं। नहीं, मैं भागी नहीं हूं, मैंने तुम्हे ये हक नहीं दिया कि मैं तुम्हारे कहने के हिसाब से अपनी ज़िंदगी ढाल लूं। वो भी तब जब तुमने मुझसे इस पर कोई बातचीत नहीं की, अपना पहलू नहीं रखा। तुम्हें सीखना होगा, की १० साल बाद भी तुम मुझ पर यूं ही अपने निर्णय नहीं लाद सकते। तुम्हें बात करनी होगी। नहीं तो तुम ही सारी ज़िम्मेदारी उठाते रहो, और मैं अपने हिसाब से भागना और रुकना करती रहूंगी। कितनी मजेदार होगी अपने बच्चों की ज़िन्दगी, है ना?

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