रोमांस कहा है, किधर है रोमांस?

एक दिन तुमने कहा, "Let women come up with their own idea of romance"।


अब मुझे तो प्यार हो ही रखा था तुमसे। मन किया लपक कर चूम लू । अब मुझे मौका मिला है, अपने आप को उन्मुक्त रूप से ज़ाहिर करने का, अपनी तरीके से प्यार करने का, तुम्हे रिझाने का। बस सपने संजोने लगी।


नाचती हुई मैं... अचानक रुकी... ख्याल आया कि क्या करुँ? कैसे करुँगी, वह तक तो सोच गयी ही नहीं। चेहरे की सारी हंसी, सारी ख़ुशी, ह्रदय में उठी सारी लहरें, सब थम गयी ।


मेरे रोमांस का आईडिया क्या है? उसके मायने क्या है मेरे लिए? सोचने लगी। सवाल गहराता गया। रोमांटिक तो हूँ, बहुत इश्क़ भी किये है। पढ़ लिख गयी हूँ, तो किताबों के रोमांस को भी महसूस किया है। मुझे लगा था कि मेरे पास इसका जवाब होगा। मुझे इसके आयाम और पहलू पता होंगे। पर इस बार क्या हो रहा है?


ऐसा नहीं है कि कभी रोमांस में लीड नहीं किया है। एक शख्स मुझे बेहद पसंद था, लेकिन जब वह मुझे किस करने आगे बढ़ा था, तो मैंने उसे धकेल दिया। लेकिन फिर पीछे से जाकर उसे ही किस करके उसे सकपका दिया था।


तुम्हे किस करना है या नहीं, ये तो आज तक नहीं पता। बहुत बार तुम्हे कहती हूँ कि तुम्हे किस किया जाना चाहिए। लेकिन फिलहाल तो मैं एकटक और अवाक हो कर देखती रहती हूँ।


खैर रोमांस पर फिर से आती हूँ । सोचती हूँ कि प्यार और रोमांस के कौनसे मॉडल्स मेरे सामने है, किन चीज़ों ने मेरे रोमांस की परिभाषा गढ़ी है?


सरस्वतीचंद्र फिल्म याद आती है। कुमुद (नूतन का किरदार) याद आती है। बताती है की सेवा ही प्यार है। पति की चिट्ठियों का जवाब देती है, अपने को शादी के बंधन में बांध कर प्यार करती है।



मुग़ल-ए-आज़म की अनारकली याद आती है। अपने प्यार की खातिर दीवार में खुद को चुनवाती है, लेकिन प्यार के साथ को अनुभव नहीं कर पाती है और मर जाती है।


अर्पण की रीना रॉय याद आती है। प्रेमी के परिवार की इज़्ज़त और सम्मान की रक्षा करते हुए खुद को न्योछावर कर देती है।


रेखा के निभाए कुछ किरदार याद आते है, जो पति और शादी के इर्द गिर्द ही घुमते है। 'उत्सव' की रेखा कम ही याद आती है।


टीना मुनीम को 'बातों बातों में' देखा था। कुछ कुछ समझ में आया था। विद्या सिन्हा 'रजनीगंधा' और 'छोटी सी बात' में, जया भादुड़ी को 'पिया का घर' में, 'बालिका वधु' में रजनी को, 'गीत गाता चल' में सारिका को देख समझ में आया की अपने प्यार का इज़हार कर तो सकते हो, लेकिन उसका बहुत ही सीमित दायरा होगा।


वासु और सपना का प्यार याद आता है। बहुत अच्छा लगा था रोमांस उनका, लेकिन वो दोनों मर जाते है। मरने की हिम्मत तो नहीं है।


बचपन के कुछ लोग याद आते है। 'क़यामत से क़यामत तक' को देख कर मेरी बहुत सारी सहेलियां १०वी पास करते ही प्यार में पड़कर अपने घर से भाग गयी थी। अपने प्यार पर दोनों (लड़का लड़की) टिके रहे और आज भी है। भगवन उनका भला करें। प्यार का मतलब मुझे तो वही समझ में आया था। मेरी ज़िन्दगी में तो वही लोग थे जो अपने मन की कर गए, अपने मांझी को पा गए, अपनी ज़िन्दगी अपनी मेहनत से संवारते चले गए।


रिश्तेदारों में मामी, मासी, चाची, ताई, सब अपने पति और बच्चों में खुश रहती। लेकिन रोमांस नहीं दिखाई देता। cousins के साथ सेक्स की बातें होती, पर रोमांस की नहीं।


इसका मतलब यह नहीं की मैंने रोमांस के बारे में कभी सोचा नहीं होगा। राजस्थान से हूँ। मुझे लगता है की बहुत ही रोमांटिक जगह है।छतरियों की छाँव में घंटों बैठ अपने प्रेमी की कल्पना की है। गाँव की पहाड़ी पर उसे अपने मन में साथ ले गयी थी। हिंदी फिल्म के गाने तो हमेशा से ही रहे है। ट्रैन, बस, गाँव, शहर, बम्बई, हर जगह ख्याली रोमांस चलता ही रहता।


पैदाइश बम्बई की है मेरी। बम्बई में ज़िंदा रह लो, वही काफी है। माता पिता ने वही किया, लेकिन मुझे पढ़ा लिखा भी दिया। यूनिवर्सिटी में फेमिनिज्म पढ़ा तो दिमाग में समझ आ गया था। पर उसके बहुत सारे ख्यालों से तवज्जो नहीं रख पायी।


वर्जिनिया वूल्फ (Virginia Woolf)अपने ख्यालों में गुम रहती, ये अच्छा लगा, और इसे अपना लिया। Wuthering Heights में Heathcliff और Catherine का प्यार तो नहीं भाया। Jane Austen तो ज़रा भी नहीं भाई। कहाँ "ना जाने क्या हुआ जो तूने छु लिया" गाना, और कहा इंग्लैंड का ठंडा समाज। कोई महिला किरदार इतना नहीं भाई, जितना Eliot का अप्रैल का महीना।


उफ़, हॉलीवुड! Casablanca का वो ऐतिहासिक किस, सारी सहेलियां पगला गयी थी, पर मुझे समझ में नहीं आया। Gone with the Wind के साथ भी कोई इच्छा नहीं जागी। और फिर शरीर और प्रेम का रिश्ता। उन सब को देखकर कन्फूशन और ही बढ़ता।


तुम्हे जूलिया रॉबर्ट्स पसंद है, इस बात का इल्म है मुझे। मुझे वो मुझसे काफी दूर सी लगती है। प्यार में जहा बॉलीवुड में त्याग के मॉडल्स भरपूर है, वह हॉलीवुड के सेल्फ इम्पोर्टेंस के मॉडल्स कंट्राडिक्शन पैदा करते है मन में। और मैं तो इतनी फोकस्ड और करियर ड्रिवन भी नहीं हूँ।


हां, बौद्धिकता की बातें की जा सकती है। अपने विचारों की अनोखिता से तुम्हे शायद आकर्षित कर पाऊ अपनी तरफ। मुझे सुन कर शायद तुम कहो, अच्छा ख्याल है। तुम्हे फेसबुक, यूट्यूब पर सुनती हूँ, देखती हूँ, मुस्कुराती हूँ, सोचती हूँ, व्हाट्सप्प पर तारीफ़ का एक शब्द या वाक्य लिख देती हूँ, लेकिन तुम्हे अपनी बातों से रिझाऊ कैसे? ये मेरी कमी तो नहीं है की मुझे नहीं पता कैसे तुम्हे रिझाऊ, लेकिन तुमने भी ऐसे ही बोल दिया, अपना खुद का रोमांस का आईडिया बताओ।


लेकिन ये ज़रूर है की एक बार मन ने कहा की ये बोझ डालकर तुमने अच्छा नहीं किया। क्या सोचा है तुमने की, औरतें शायद इस चीज़ के लिए तैयार है भी या नहीं? जब हमें रात ८ बजे घर पहुंचना है, किसी से बात नहीं करनी है, इज़्ज़त संभालनी है, सबकी सेवा करनी है, और नए ज़माने के हिसाब से करियर भी बनाना है।आज़ादी के नाम पर सिर्फ बोझ ही और बढ़ा है।


तुमसे प्यार करना चाहती हु, लेकिन इस बात से दो कदम पीछे हैट जाती हू। अभी तो दो ही तरीकें दिखते है, या तो कविता लिखू, या फिर सेक्स वाली डबल मीनिंग की बातें करू। अपने मन की बात करने जितना समय तो नहीं मिलता हमें। क्या तुमने सोचा की औरतें तैयार भी है इसके लिए? तुम्हारे ज़िन्दगी में अवश्य ऐसी औरतें होंगी, कभी हमें भी बताना। बताना की इसके क्या मायने है? एक वाक्य मात्र से शायद बच नहीं पाओगे तुम, संजय बाबू? आशा करती मेरी मदद करोगे। 

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