प्रेम का संदेश

 प्रेम का संदेश


प्रेम का संदेश कैसा होता है? उसका रंग कैसा होता है, उसकी खुशबू कैसी होती है, उसका आकार कैसा होता है, उसका संगीत कैसा होता है, उसके शब्द कैसे होते है?


ये संदेश जीवन में कितनी बार मिलता है? या दिन में, या महीने में, या साल में कितनी बार मिलता है? कितने लोगों से मिलता है, या एक ही से मिलता है, या कुछ ही लोगों से मिलता है? क्या हमको पता चलता है कि कौनसा संदेश प्रेम भरा है, या दोस्ती भरा या नफरत भरा? कितने प्रकार के प्रेम संदेश होते है दुनिया में, इसकी कोई थिअरी है क्या?


मुझे तो कइयों प्रेम संदेश मिले है, ऐसा मुझे लगता है। ये कहानी मैं सीधे ही उन घटनाओं से शुरू कर सकती थी, लेकिन मुझे सस्पेंस बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए अब आगे पढ़े।


एक और डिस्क्लेमर। ये सारे किस्से मर्दों के साथ है, लेकिन उनकी मर्दानगी को में इंसिदेंटल मानना चाहती हूं। लेकिन अगले ही क्षण ऐसा भी लगता है कि वे सभी अगर मर्द नहीं होते, तो ये प्रेम के संदेश मैं नहीं जान पाती। तो मैं तैयार हूं जज होने के लिए।


एक वीरान सा ५० एकड़ की ज़मीन। मैंने सोचा था गायों के लिए छांव होनी चाहिए। अखिलेश के साथ ठाना की नीम के बीज बोएंगे इस पूरे ज़मी पर।जून की कड़कती गर्मी, तीन दिन लगे सिर्फ ये काम करने में। आखरी क्षणों में उसकी सांसे और मेरी सांसे एक साथ धड़क रही थी, और दोनों को सुनाई दे रही थी। ऐसा लगा था कि हम तीनों एक हो गए है। और प्रजनन की इस चिर क्रिया का सम्भोग हमारे साथ धरती भी कर रही है।


दिल्ली में मैं कार से घर आ रही थी। अभिनव बाइक पर था। ट्रैफिक जाम में वो तो निकल गया, मैं अटक गई। मेरे इंतज़ार में उसने एक सिगरेट जलाई। थोड़ी सिगरेट ख़त्म हुई होगी, में भी पहुंच गई उस रोड़ पर। बाइक लेकर मेरी तरफ पहुंचा, मैंने शीशा उतारकर हाथ बाहर निकाला, और सिगरेट मेरे हाथ में। दो तीन कश लगाए मैंने, और उसके हाथ में फ़िर से पकड़ा दी। फ़िर वो बाइक पर आगे बढ़ गया। हम दोनों साथ और दूर एक साथ, और ये हमने पहले नहीं सोचा या प्लान या बात किया था। बस हो गया। एक हो गए हम पाँच (वो, मैं, सिगरेट, कर और बाइक), फिर से।


ऐसे ही एक दिन किशनगढ़ से जयपुर आ रही थी। किन्हीं कारणों से ड्राइवर को बुलाया था। उसका नाम तो अब याद नहीं है मुझे। कार में डेक के गाने ना चला कर मैंने अपने फोन पर गाने चलाए। मुझे नहीं पता था उसे मेरे पुराने गाने पसंद आएंगे या नहीं। मेरे स्टूडेंट्स ने मुझे मेरी उम्र का अच्छा खासा एहसास दिला रखा था। उसने कहा ऑक्स केबल लगा दे। तीन घंटे में सारे रास्ते पर हम गाने सुन रहे थे। वो अपने प्यार की यादों में खोया था, मैं अपनी यादों में। उसकी आंखें बता रही थी उसके दिल का हाल। हम दोनों और गाने और रस्ता। याद रहा प्रेम का वो संदेश।


संजय ने एक दिन कहा घर आ जाओ। छोटी पार्टी थी। सोचा था ज़ुबान से बातें होंगी। पर प्रेम के क्षण बोलने वाले नहीं होते। उसके सामने ही बैठी थी, ताकि उसे देख सकूं। उसने एक बार भी मुझे नहीं देखा। तीन घंटे में एक बार भी नहीं। देश प्रेम के गाने तो गा ही रहे थे। आख़िर में उसके आँख में आसूं दिखे। देश को इस तरह लुटता देख, बिखरता देख, सिर्फ आंसू। ऐसे कितने आंसू बहाए होंगे उसने। दूसरों ने। आज़ादी के समय भी कितनों ने देश प्रेम में अपने आप को न्योछावर कर दिया होगा ऐसे ही। ये भी एक संदेश था। हा, मैंने देश प्रेम का संदेश भी पढ़ा है, भले ही कुछ लोग हंसे मेरे पर।


हम दोनों ही एक दूसरे के प्यार में थे। अनुराग का पहला प्यार थी मैं, मेरे लिए वो सच्चा प्रेमी था। हम दोनों जब साथ में रहते तो कई बार इस बात पर झगड़ा होता की मैं उससे उतना प्यार नहीं करती जितना वो मुझे करता था। पहले प्यार के पैशन का क्या मुकाबला भला। लेकिन उस शाम मैं और वो और मेरा घर समाए हुए थे, इस क़दर...प्रेम ही तो था वो।


अनुराग के साथ ही हिमालय के पहाड़ों पर गई थी। एक ही समय पर वहीं गाना गाना, बिना बोले ही हाथ पकड़ लेना, आंखों में आंखे डाल कर देखते रहना, ये भी कितना स्वाभाविक प्रेम था।


प्रदीप के साथ बहुत अच्छा काम किया था मैंने। मैं सोचती और लिखती और वो ग्राफिक्स बनाता। कितने ही लम्हें थे ऐसे जब काम में प्यार के लक्षण दिखते। बहुत सुंदर work equation था हमारा।


एक बार बंबई में नसीरुद्दीन शाह का एक नाटक देखा। मेरी अंधी सहेली को उनसे मिलना था। हम बैक स्टेज गए। सहेली बोलती ही जा रही थी और तारीफ़ करती ही जा रही थी। कुछ बचा नहीं था मेरे पास। मैंने उनसे कहा, "Can I hug you?" बहुत ही सहज था वो hug। आज भी याद है उनका अंगरखा और उसकी नर्माहट।


पद्मनाभ के साथ मुंबई की सड़कों पर चलना ही प्रेम का संदेश था। मुंबई को जब तक पैदल चलकर नाप ना लो, तब तक मेरे हिसाब से तुम मुंबईकर नहीं हो। कार वालों को मैं नीची नज़रों से देखती हूं इस मामले में। शोभा डे का कुत्ता, धीरूभाई अंबानी का घर, हर्षद मेहता की बिल्डिंग, देवानंद का बंगला, कन्हेरी केव्स, नवी मुंबई, अंबरनाथ के झरने, इन जगहों पर अपने प्यारे के साथ लोकल ट्रेन में लटककर जाना ही प्रेम संदेश था।


बंबई की एक सुनसान मिल में बैठकर ये कहानी लिखना ही अपने आप में एक प्रेम संदेश है। इतिहास के गलियारों में मजदूरों के पैरों की और मशीनों के चलने की भूतिया आवाज़ और बाहर के ट्रैफिक के शोरगुल में चलता हुआ आज, मुझे तो बहुत ही रोमांचित करता है। और साथ ही विचलित भी करता है। यहां भी एक दिन गगनचुंबी इमारत खड़ी होगी। कई लाशें होंगी सपनों की, कई नए सपने होंगे। लेकिन मन नहीं मानता कि मैं अपने अतीत के इस हिस्से को अपनी स्मृति से बाहर निकाल दूं। ऐसा लगता है कि लड़ लूं सारी दुनिया से, भले ही कुछ ना मिले इस ज़मीन को खाली रखकर। इस उजाड़ को भी प्यार से सहेजकर रख लूं। इस प्रेम के क्षण को अमर कर दूं।


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