छत

छत


नीचे जाना निषेध था। घर पर पूरा दिन रहना मुश्किल था। बची सिर्फ एक छत।


दो सहेलियां जो आमने सामने रहती थी, कभी कभार मिलती थी, काम के व्यस्तता के कारण, अब तो रोज़ ही उन्हें घर पर रहना था। चलो छत ही बची थी अब टहलने को।  छत पर हर शाम जाने लगे। कई दिन तो अपने साथ क्या क्या हुआ इस आपबीती सुनाते हुए निकल गए। ऑफिस में अपना करियर ग्राफ कैसे बढ़ा या घटा, कौनसे टीम मेंबर ने कहां और कब और कैसे धोखा दिया, किसने साथ दिया, किसने मदद की, ये सब डिस्कस हुआ। 


फ़िर प्यार की बातें होने लगी। कौन ऑफिस में अच्छा लगता? ऑफिस में नहीं तो बस स्टैंड रेलवे स्टेशन या बगल वाले ऑफिस का कोई लड़का कोई तो प्रेम भरी कहानी होती ही है, जिसका वृतांतपूर्ण डिस्कशन होता।


फ़िर जब ये सब ख़त्म होने लगा, लेकिन छत पर जाना अभी भी ज़रूरी था, तो दोनों आसमान देखती। पक्षी - कौआ और कबूतर ही वहां पर थे, सो कुछ बातें पक्षियों की हो जाती। आसमान देख पहाड़ों पर बिताई हुई छुट्टी, या लोनावला की बारिश वाली यादें, या मुन्नार के पहाड़, कोई हॉलिडे तो याद ही आ जाता। फ़िर सपने देखे जाने लगते। एक बकट लिस्ट बनने लगती। इन जगहों पर जाना है, ये सब करना है। ये सब कैसे करेंगे, इसकी प्लैनिंग हो जाती। लाइफ गोल्स मिल गए, अब lockdown खुलते ही ये सब कर लेंगे।


इस सब प्लैनिंग में कई बार बीमारी की खबरें भी निकाल आती। खबरें आने लगती, आज यहां इतनी मौंतें हुई, आज वहां इतनी। मेरे पहचान वाले इस शख्स के उस पहचान वाले की मौत हो गई। पता नहीं कब तक चलेगा ये? कब वैक्सीन आएगी?


फ़िर लोगों के अपने घरों कि तरफ चलने की भी खबर आती। एक का दिल पसाज जाता, दूसरी बड़े ही आराम से कह देती, ये लोग मूर्ख है, एक जगह बैठे नहीं रह सकते, क्या रखा है गांव में? अब देश भर में कोरोना फैलाएंगे। कभी एक के पास जवाब होता, कभी दूसरी के पास। छत पर आना बदस्तूर जारी रहता।


फ़िर खाना बनाना, नए रेसिपी एक दूसरे से शेयर करने का सिलसिला चालू हुआ। खाना शेयर किया या नहीं, ये नहीं बताऊंगी मैं!  इम्यूनिटी बढ़ाने के टोटके और सेहतमंद होने के नुस्खे भी डिस्कस होते, कुछ ट्राई भी लिए जाते। कभी रिजल्ट अच्छा आता, कभी कुछ नहीं होता शरीर में। कभी दालचीनी का काढ़ा बहुत गर्मी कर देता शरीर में और पीरियड फ्लो बाढ़ जाता। 


कभी कभार देश हित या विज्ञान की बात होती, लेकिन उससे कई बेहतर विषय थे बातें करने के लिए, मसलन कोई सहेली की बहन भाग गई किसी दूसरे जात के लड़के के साथ, या किसी के भाई ने कैसे इस विपदा के समय भी इतने सारे पैसे कमा लिए, या कैसे कोई दूसरे शहर में लड्डू खाने से कोरोना फैल गया। हा हा, उन दोनों लड़कियों ने भी फिल्म स्टार्स की मौत पर खूब लंबे चौड़े डिस्कशन किए। क्यों नहीं करती, आख़िर वे भी समाज का हिस्सा थी। कभी उस एक्टर के लिए या कभी दूसरे या तीसरे, ख़राब तो लगता ही है, जब कोई मरता है। 


आज चार महीने हो गए, इनकी बातें ख़त्म नहीं हुई। क्या कभी भी इस दोनों में मन मुटाव, बहस या झगड़ा नहीं हुआ होगा? मुझे तो नहीं लगा कभी भी उन दोनों को देख कर। शायद ज़रूरी ना हो ये वाले मोड़ लाना, इन दिनों की बातचीत में। शायद पता हो इन्हे की बात करते रहना ज़रूरी है।


छत को उन दोनों से भी लगाव हो गया। जब वे दोनों आती तो पक्षियों को संख्या बढ़ जाती छत पर। कंपनी सबको अच्छी लगती है। बूढ़ी आंटी को भी अच्छा लगता उन दोनों को देखकर, हालांकि कोई बात चीत नहीं होती। जेनरेशन गैप के चलते इन तीनों में कोई बात नहीं हो सकती थी।


अब इस कहानी को कैसे ख़त्म करूं? क्या एक सहेली को बेरोजगार बना कर दोनों में दूरी पैदा करूं, या इस संदर्भ में लॉकडाउन खुलते ही दोनों सहेलियां नौकरी पर चली जाती है, और छत को वीरान कर दू? छत पर जो एक दुनिया बनी थी, जीवन की, सपनों की, लम्हों की, मेरी कहानी तो वहीं है। छत थी, तो बातें हुई, ज़िन्दगी आसान हुई, आसमान से जुड़ाव रहा, खुलापन महसूस हुआ, छोटे घरों की घुटन से निजात मिली। मेरी आवारगी तो वहीं तक ही रहना चाहती है। 

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