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बम्बई की लड़की

कई बार लिखा है की मुझे तुमसे नफरत है। जो मुझे जानते है, पहचानते है, वो मेरे बारे में ये भी जानते है की मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती। तुम मेरी नस नस में समाये हुए हो, लेकिन मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती। जब भीड़ का सामना करती हु, तब विरार लोकल में चढ़ने वाले क्षण ही याद आते है और मैं भीड़ से लड़ कर पार कर जाती हूँ। दौड़ते भागते हुए इस भीड़ भाड़ वाले शहर में भी कई बार सर उठा कर किसी की तरफ मुस्कुरा लो, ये भी तुमने सिखाया। पता नहीं तुमने सिखाया है या नहीं, या हमारी फितरत के अनुसार इतनी भीड़ में इंसान होना सिर्फ मुस्कराने से ही महसूस कर सकते थे। लेकिन तुमने इंसान बनाये रखा। वही इंसानियत तब खत्म हो जाती जब कोई पटरी पर लोकल ट्रैन से कट कर कोई मर जाता और ट्रैन को रुकना पड़ता, तब हमने ही कहा, "इसी ट्रैन के आगे मरना था उसे।" तुमने ही सिखाया था की जान है तो जहाँ है। इसलिए ट्रैन में लटकते हुए कोई पॉकेटमार ज़ेब काट रहा होता,और पता रहता कि ज़ेब कट रही है, लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते है, थोड़ा भी हिल गए तो ट्रैन से गिर जायेंगे और मर जाएंगे और बाकी लोग लेट हो जायेंगे। इससे अच्छा है कि ज़ेब कट जाए। पैस...

एक चित्र

एक दिन फेसबुक चैट पर उसने कहा, "हाई"। मैंने भी जवाब दिया।फिर बातें करने लगे। लगता हैं, शायद उस दिन उसके पास मेरे लिए समय था। कई साल पहले वो कही दिख भी जाता तो रोंगटे खड़े हो जाते थे। अब ऐसा नहीं होता। बस पता रहता हैं की वो ज़िंदा हैं। कहीं मशरूफ हैं अपनी ज़िन्दगी में। उसने कहा, "मैं बम्बई छोड़ कर जा रहा हूँ। मैंने पुछा, "क्यों?" "मुझे नफरत हैं इस शहर से। मुझे नफरत हैं इस कॉलोनी से।" मैंने देखा, मेरे आँख से आंसू निकल रहे हैं। ये क्या हो रहा था, क्यों हो रहा था? मैं बम्बई में नहीं रहती। मुझे भी वो शहर नहीं पसंद। मुझे इस शहर ने बड़े ज़ख्म दिए हैं। बार बार यही एहसास दिलाया की मैं कुछ नहीं हूँ। आज तक यही एहसास में जीती हूँ। मानो कोई पत्थर सा बैठा हैं, जो कुछ बनने नहीं देता। लेकिन बम्बई ने उसे तो सब कुछ दिया था। पैसा, रुतबा, शोहरत, प्यार, बीवी, बच्चा, घर। बम्बई से नफरत क्यों? और मेरी आँखों में आंसू क्यों? १६ साल की उम्र में पहली बार कोई अच्छा लगा था। वो यही था। कितना अलग किस्म का प्यार था वो। मुझे लगता की वो सलमान खान जैसा दिखता हैं। उस समय सलमान क...

प्यार और करियर: एक विरोधाभास

क्या सच में दोनों एक दुसरे के आमने सामने लड़ाकू की तरह खड़े है और हर औरत को किसी भी समय इन दोनों में से एक को चुनना होता है? यह चुनाव ज़िन्दगी में एक या दो बार नहीं, अपितु हर शाम, हर वीकेंड, हर महीने में कुछ दिन तो करना ही पड़ता है। ओफ्फो अबला नारी। क्या दोनों में co-existence नहीं हो सकता? हाहा, शायद भारत देश में नहीं। जहाँ परंपरा ने औरत को आज तक नहीं छोड़ा है और हर मोड़ पर प्यार को सेवा, इज़्ज़त, परिवार और perfection के साथ जोड़ कर प्यार को इतना बोझिल बना देती है। परंपरा की बेड़ियाँ इतनी मज़बूत है की औरतों के पास सिर्फ दो ही response है। प्यार और करियर में से एक की क़ुरबानी।इस प्यार और करियर की dichotomy को तोड़ने के लिए- या तो परंपरा की बेड़ियाँ अपने पैरों में और कसवा लो, या फिर करियर को इतना तवज्जो दो, की प्यार सेकेंडरी ही रहेगा। इन दोनों extremes के बीच के responses अक्सर रिकॉर्ड नहीं होते। या ये भी होता होगा की balanced life एक myth है, या जो लोग कहते है की वें दोनों को बैलेंस करते है, मेरे हिसाब से वें लोग mediocre केटेगरी में ब्रांडेड होने के खतरे से गुज़रते है। इसके पहले की इस प...

बीस साल बाद

एक दिन मैंने बहुत ही गुरूर में कहा , " तुम्हारा सबसे बेस्ट किस मेरे साथ ही होगा !" तुम चौंक गए। तुम्हे कुछ अजीब लगा। तुम ने पुछा , " तुम्हे मुझमे क्या अच्छा लगा था ?" मैंने कहा , " पहली बार जब हमारी बात हुई थी , तब भी तो बताया था तुम्हे। " तुम्हे याद हो , ऐसा कोई ज़रूरी नहीं। मुझे तुम में ऐसा क्या अच्छा लगता है? मुझे तुम से प्यार क्यों है ? तुम्हारी आवाज़ से , तुम्हारे विचारों से , तुम्हारे गानों से , तुम्हारे नीले शर्ट से , तुम्हारे देशप्रेम से , मुझसे नज़र ना मिलाने से , तुम्हारे सिंहासन नुमा सोफे पर बैठने के अंदाज़ से। इन सबसे , इनमे कुछ भी कम होता तो ... इन सब में से तो कुछ काम हो ही नहीं सकता। सब एक दुसरे से जुड़े हुए है। या ये कहूँ कि सब एक दुसरे से ही निकलते है। जब मैंने तुम से कहा की सबसे बढ़िया किस मेरे साथ ही होगा , मेरा दिल ही जानता है की मैंने कितनी हिम्मत उठायी थी। पर इसमें ऐसी हिम्मत की कौनसी बात थी ? हिम्मत मुझ...