बम्बई की लड़की
कई बार लिखा है की मुझे तुमसे नफरत है। जो मुझे जानते है, पहचानते है, वो मेरे बारे में ये भी जानते है की मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती। तुम मेरी नस नस में समाये हुए हो, लेकिन मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती। जब भीड़ का सामना करती हु, तब विरार लोकल में चढ़ने वाले क्षण ही याद आते है और मैं भीड़ से लड़ कर पार कर जाती हूँ। दौड़ते भागते हुए इस भीड़ भाड़ वाले शहर में भी कई बार सर उठा कर किसी की तरफ मुस्कुरा लो, ये भी तुमने सिखाया। पता नहीं तुमने सिखाया है या नहीं, या हमारी फितरत के अनुसार इतनी भीड़ में इंसान होना सिर्फ मुस्कराने से ही महसूस कर सकते थे। लेकिन तुमने इंसान बनाये रखा। वही इंसानियत तब खत्म हो जाती जब कोई पटरी पर लोकल ट्रैन से कट कर कोई मर जाता और ट्रैन को रुकना पड़ता, तब हमने ही कहा, "इसी ट्रैन के आगे मरना था उसे।" तुमने ही सिखाया था की जान है तो जहाँ है। इसलिए ट्रैन में लटकते हुए कोई पॉकेटमार ज़ेब काट रहा होता,और पता रहता कि ज़ेब कट रही है, लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते है, थोड़ा भी हिल गए तो ट्रैन से गिर जायेंगे और मर जाएंगे और बाकी लोग लेट हो जायेंगे। इससे अच्छा है कि ज़ेब कट जाए। पैस...