5 किलोमीटर का सफर

"हम बनिए है। हमें दिमाग चलाना आना चाहिए। शरीर को नहीं।"

वैसे भी बचपन अस्थमा, रहूमटॉइड आर्थराइटिस,कमज़ोर शरीर में ही गुज़रा था। १५- १८ साल की उम्र में karate तो सीखा और शरीर ठीक भी हो गया, पर ज़िन्दगी में कही पीछे छूट गया।

मेरे पापा तो खूब चलते थे, घर से स्टेशन, स्टेशन से ऑफिस, हमें भी वही आदत थी,जब से लिब्रलाइजेशन हुआ, और पैसे होने का मतलब अधिक खाने और गाडी की विलासिता और ज़रुरत के बीच की दूरी घटना से होने लगा, बनिया बुद्धि और ही हावी हुई। माँ बाप का प्यार तो सिर्फ खाने में ही दिखता था। मेरी माँ को अब भी यही लगता है की मैं मोटी नहीं हूँ। खैर, उस पर लिखना एक और पुराण हो सकता है।

बम्बई शहर से तो चलने का ही नाता है, इस शहर की जितनी भी समझ है, वह सिर्फ इस शहर की हर गली में चलने से ही आयी है। बोरीवली से अँधेरी, अँधेरी से दादर, चर्चगट रेलवे स्टेशन से पूरा टाउन, फोर्ट, कोलाबा और कफ परेड, हर पश्चिम उपनगरों में रहने वाले लोगों ने अपने अपने रास्ते बनाये है, उन रास्तों पर अपने दोस्त, रहगुज़रबनाये है। चलने से ही इस शहर से रिश्ता बनता था।

खैर, वो पुराना समय था। अब हम गाडी वाले economically upward mobility की होड़ में है। स्पीड का मतलब ही गाडी में बैठकर शहर को पीछे जाते देखना ही ख़ुशी भर है।  करोड़ों की बातें करते है मेरे परिवार वाले, जब भी मिलते है।

मैंने भी अपनी दुनिया बनायीं। दुसरे शहर में। ये तो तय ही था की बम्बई में जितना चले है, उतना तो कभी भी नहीं चलूंगी। बम्बई में चलना बेफिज़ूल लगने लगा था। सिर्फ फ़्रस्ट्रेशन ही बढ़ता था चलने में। शहर का हर मुक़ाम बीसियों बार देखा हुआ, पुराना और बोरिंग सा लगने लगा। एनर्जी ज़रा भी नहीं महसूस होती।

दिल्ली जाते ही कुछ दिन बस में सफर किया और फिर ऑटो ही ऑटो। दिन रात काम में मशगूल। शरीर जकड रहा था और दिमाग तेज़ चल रहा था। जयपुर में भी यही हाल। मोटापा रोज़ नए आयाम छूता।

एक एक्सीडेंट के बाद डॉक्टर ने कहा मोटापा कम कर लो नहीं तो पैर में जो सर्जरी हुई है, वो ठीक नहीं होगी।

जब जागो वही सवेरा।

वाकिंग शुरू की, योग, डांसिंग, १००० कैलोरी वर्कआउट सब किया, वज़न कम भी हुआ, सुन्दर दिखने लगी, फिर कुछ दिन के लिए छोड़ दिया।

मोटापा तो फिर से आ गया। ट्रैकिंग पर गए तो महसूस हुआ की जवानी के दिन और जोश नहीं है।

बचा हुआ जो भी है, उसे पकड़ लो और बचा लो। चैलेंज भी लगा की ऐसे कैसे इतना बकवास शरीर हो गया?

फेसबुक की कृपा से मुनीर, मेरे स्कूल का ज़माने का साथी, से फिर कड़ी जुडी।  जब मुनीर के बारे में पढ़ा तो लगा की उसकी मदद ली जाए।

और ट्रेनिंग शुरू हुई। उसकी बातें गौर से सुनी, अमल करने में शायद कमी तो रही होगी, लेकिन कोशिश पूरी की।

दिल मचल रहा था कब एक किलोमीटर बिना रुके भागुंगी। ये बता दू, भागना मेरे लिए एकदम ही नामुमकिन था, ट्रेनिंग के पहले। भागते वक़्त सांस लेने में शुरू से ही तकलीफ होती थी। अब भी होती है। इस पर मेहनत चालू है।

शुरुआत में तो खूब म्यूजिक डाउनलोड किया खुद को भागने में मशगूल रखने के लिए, फ्रेंड्स और स्टूडेंट्स को रोज़ बताती की आज इतना भागी, आज इतना ये किया, अपने आप को पाजिटिविटी से मोटीवेट किया हुआ रखा।

 Explorunners में सारे रनर्स को देख कर सिर्फ प्रेरणा मिलती। मुनीर ने मना किया था की पेस की तरफ ध्यान मत करो, लेकिन ध्यान तो जाता ही था। और रोज़ आश्चर्य होता की कैसे ये सब लोग कर लेते है? लग रहा था की ये सब किसी और ही मिटटी से बने है। खुद को ढूंढती इन सब में। तो क्या हुआ, की मिलने में देरी हो रही है।

एक किलोमीटर भाग ली। अच्छा, तो क्या हुआ? टारगेट तो ५ किलोमीटर का है- मन बोलै। ओफ्फो। ये मन कभी जीने नहीं देगा। यही मन है जो हर सुबह उठने पर कहता है की थोड़ी देर और सो ले, सुबह नहीं, शाम को जाते है, आज के लिए काफी ही, अब कल करना, आज तो खूब कर लिया, चलो कुछ खाते है, सेलिब्रेट करते है।

लेकिन यही मन एक दिन कहता है, चलो आज ५ किलोमीटर दौड़ लेते है। और बेचारा शरीर, सुनता है, उसका धर्म ही यही रह गया है।

शिवजी पार्क से वर्ली सी फेस वाली सुबह हमेश याद रहेगी। यहाँ तो मैं पैदल चली थी, आज दौड़ कर देखती हु। १० मिनट में ही हवा टाइट। पायल मेरे साथ थी, भगवन भला करे उसका, लेकिन मैं सामना नहीं कर पायी। अपने टूटे फूटे तरीकों से दौड़ कर ५.५ किलोमीटर का रिकॉर्ड बनाया।

Explorunners को देखकर, सुनकर ही दिल भाव विभोर हो रहा था। बम्बई का ये रूप तो कभी नहीं देखा था।

लौटते वक़्त गौरव, पायल और माया के मैराथन की बात चित को बहुत से सुन रही थी, दौड़ने की प्रक्रिया को दिमागी तौर पर समझ रही थी। लेकिन जब तक खुद पर नहीं बीतेगी, तब तक तो ये सिर्फ एक दिमागी अनुभूति होगी।

जयपुर में अपने बब्बन, लैला, रोबिन, छैनु, भूरा और कई दुसरे डॉग्स के साथ दौड़कर दिल को सबसे बड़ा सुकून मिला। रोज़ दौड़ में सुधार होने लगा।

जिस दिन में ६ किलोमीटर दौड़ी थी (मेरा आज तक की सबसे लम्बी दौड़), उस शाम को बेहद ही अलग अनुभूति हुई। एक समय पर शरीर ने स्पीड पकड़ ली थी। ज़िन्दगी की दौड़ में स्पीड का मतलब, कार, बस, ट्रैन, एयरोप्लेन की स्पीड में ही सिमट कर रह गया है। जब मैं भाग रही थी और पेड़ पौधे, रोड, पत्थर पीछे छूट रहे थे, तब शरीर से स्पीड को महसूस किया। क्या ऐसा हो सकता है की शरीर से भी गति को महसूस किया जा सके? अजी, बिलकुल! एक सनसनी सी दौड़ी शरीर में। शायद उस दिन से मुझे प्यार हो गया दौड़ने से।

एक दिन मुनीर का फ़ोन का फ़ोन आया। हमेशा की तरह में अपने रूटीन का अपडेट देने लगी। इस बीच मुनीर ने पुछा, "तुझे याद है वो दिन स्कूल में......"। अरे, मुझे मेरा पुराना साथी मिल गया इन सब में। वो फोन कॉल मेरी ज़िन्दगी में हमेशा ही अंकित रहेगा।

जो मैराथन में पहली बार रजिस्टर किया था, वो मैं दौड़ नहीं पायी। रोबिन का एक्सीडेंट हो गया था मेरे साथ दौड़ते वक़्त। वो ज़िंदा तो है, लेकिन पता नहीं अब कब चलेगा।लेकिन मैं उसके पास थी उन दिनों में, उस बात की ख़ुशी है मुझे।

दिसंबर ९ को पहली मैराथन में भागी। लोग कहते है दुसरे किस्म के लोगों को देख कर हमें भी प्रेरणा मिलती है भागने की।मुझे ऐसा कुछ महसूस तो नहीं हुआ, लेकिन ५ मिनट के डिफरेंस में मैंने रेस ख़तम की। लोगों के होने का फरक तो पड़ता ही होगा, आप कितने ही पृथक क्यों न हो जाओ?

ये ५ किलोमीटर सिर्फ ५ किलोमीटर नहीं है, ये ४२ साल में जितने भी तौर तरीके सीखे है, अपनाए है, उनको बदलने का प्रयास है।

ये ५ किलोमीटर शरीर को बिगाड़ कर मज़बूत करने का प्रयास है।

ये ५ किलोमीटर कहते है की मैं खुद का ध्यान रख सकती हु, में खुद ही नयी चीज़ें कर सकती हु, मैं खुद ही एक बहुत सुन्दर औरत और इंसान बन सकती हु।

ये ५ किलोमीटर मुझे सब से जोड़ते है, एक अलग ही बंधनसे।

ये ५ किलोमीटर कहते है की ज़िन्दगी सच में बहुत हसीन है।

ये ५ किलोमीटर रोबिन के लिए है,

ये ५ किलोमीटर सभी Explorunners के लिए है।

Comments

  1. Really inspiring and straight from the heart !! It's all about mind Vs. heart.. amazingly expressed your journey !!
    Hats-off... Congratulations Mamta.

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  2. Mamta...i actually wanted to write my comment in Hindi but grammer ka soch ke darr gaya...but very nicely written...emotions are always better expressed in mother toungue... I have a philosophy....three A's ( Aprreciations , Apology and Abusers ) should be expressed in your mother tongue.. The impact is far better.... you doing 5 kms is equavalent to doing a marathon in spirits. Well begun is half done.... these moments have to be celevbrated,,...may be some TBWO...i will get my share of sweets....I especially liked the way you connected your childhood ...ur dad and your youth in the small but sweet blog... Congrats once again and stay blessed.

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  3. That's an excellent post - a piece of your life shared with us.
    I am sure it'll inspire many. We started our marathon journey together under the expert guidance of Munir. Looking forward to crossing many more such miles-stone together.

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  4. Mamta! This brought a tear to my eye ! What a soul-baring and expressive piece of writing..Writing in hindi adds such a charismatic perspective to your experience. To tell you the truth, this is what the purest form of running enkindles in us. So many of us run behind numbers.. be it money, be it miles, be it pace, not many of us slow down ''to smell the roses" and look within and around..to experience the cleanse it gives us,the lessons it teaches us, the better human being it makes us. If we run with this awareness imagine the world changing for the better one person at a time and one animal at a time :) I felt transported back in time to my school days, where I had to read hindi to save my life and marks but what an heart-rending narrative this is...a perfect ode to Robin and the true spirit of running!

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  5. आप हमेशा से मेरि प्रेरणा रहे हो, आपने बहुत कुछ सिखाया है मुझे - आपकी मैराथन दौड़ के सफर से मुझे ओर भी ज्यादा प्रेरणा मिली है।
    आप एक सुपर वूमेन हो, आप जो निर्णय ले लो वो हमेशा पूरा करते हो, चाहे वो कुकिंग हो, विपश्यना ध्यान, खुद को सुधारना या किसी ओर की मदद करना बिना अपने मतलब के।
    आई लव यू।

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