That mountain in that village
In the harsh summer of May and June, these Aravali rocks co-operated with the sun and never allowed anyone to come closer to them. But when it was 4 o clock, cooler winds came subtly and cooled the rocks immediately.
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My father and uncles and aunts at the temple entrance |
We would also take active part in the evening aarti in the ancient temple on the hill, though I think, it was majorly for the prasad. But we were mesmerized everytime we passed through that ancient surang, that tunnel, which we were told, connected with some temple in Pushkar. It was now closed obviously, and was 'full of snakes and ghosts'. There were days when I was very scared, and there were some other days, when I felt brave to at least peep in there. In my head, I had already crossed that tunnel, at least halfway, braving the snakes and ghosts.
Going to the dargah next door was equally important. None of us knew whose mazaar it was, but it was a sacred place, and that was enough for us to bow out heads at the mazaar.
Another memory of those boulders is the 'Fisalpatti'. What is that? Well, in basic translation, it means a slide. One of those boulders had a very smooth surface, may be because of the wear and tear of the weather. That smooth surface, as my father says, must have been further smoothened by the human factors, in this case the shepherds, who grazed their sheep and goats.
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Father on the fisalpatti- slide |
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Getting ready on the slide! |
For all of us cousins, it was the best slide ever. Most of us now have their own children and whenever they bring them to Peeplad, the one hour 'Fisalpatti' ritual is a must do. I am glad that we can offer so much of our childhood memory to our children, as is. The banyan tree is still there, the temple is there, the dargah is there(though I see my cousins no longer bowing on to the mazaar), the school has grown a bit, and the road has more vehicles now!
राजस्थान के नागौर जिले में परबतसर कसबे से 8 किमी की दूरी पर पिप्पलाद ग्राम हैं। जहां अब तक की गई खोज द्वारा यह साबित होता है कि हमारे पुराण ग्रन्थों में वर्णित पिप्पलाद तीर्थ यहीं विद्यमान हैं। जगतजननी मां भगवती के कृपा पात्र भारतीय अध्यात्मिक इतिहास के तपस्वी ऋषियों में से एक उज्ज्वल रत्न महान त्यागी महर्षि दधिची के परमप्रतापी पुत्र पिप्पलाद मुनि के नाम पर हमारे पुराणों में जिस पिप्पलाद तीर्थ की महिमा का वर्णन हुआ हैं वह यहीं हैं। पिप्पलाद ग्राम में स्थित दक्षिण की ओर की पहाड़ी व उसकी तलहटी में उत्तर की ओर स्थित सरोवर ही पिप्पलाद तीर्थ हैं। एक समय था जब पिप्पलाद ग्राम आबदी की द्वष्टि से भी सैकड़ां वर्षो पूर्व तक एक समृद्धिशाली विशाल नगर था। पुष्कर तीर्थ के समीप अजमेंर नगर की बसावट तक भी पिप्पलाद की गणना विशाल नगरों में की जाती थी। इसके उत्तर में समीपस्थ नगर परबतसर जीसका तब अस्तित्व ही नहीं था पिप्पलाद की सीमा में था। आज यहां परबतसर के बाजर में भू.पू. मारवाड़ राज्य में निर्मित सायर भवन हुआ हैं उससे कुछ आगे तक इसी की सीमा मानी जाती रही है, परन्तु जिसकी पिप्पलाद से आज 4 मील की दूरी हो गई है।
पिप्पलाद तीर्थ
राजस्थान के नागौर जिले में परबतसर कसबे से 8 किमी की दूरी पर पिप्पलाद ग्राम हैं। जहां अब तक की गई खोज द्वारा यह साबित होता है कि हमारे पुराण ग्रन्थों में वर्णित पिप्पलाद तीर्थ यहीं विद्यमान हैं। जगतजननी मां भगवती के कृपा पात्र भारतीय अध्यात्मिक इतिहास के तपस्वी ऋषियों में से एक उज्ज्वल रत्न महान त्यागी महर्षि दधिची के परमप्रतापी पुत्र पिप्पलाद मुनि के नाम पर हमारे पुराणों में जिस पिप्पलाद तीर्थ की महिमा का वर्णन हुआ हैं वह यहीं हैं। पिप्पलाद ग्राम में स्थित दक्षिण की ओर की पहाड़ी व उसकी तलहटी में उत्तर की ओर स्थित सरोवर ही पिप्पलाद तीर्थ हैं। एक समय था जब पिप्पलाद ग्राम आबदी की द्वष्टि से भी सैकड़ां वर्षो पूर्व तक एक समृद्धिशाली विशाल नगर था। पुष्कर तीर्थ के समीप अजमेंर नगर की बसावट तक भी पिप्पलाद की गणना विशाल नगरों में की जाती थी। इसके उत्तर में समीपस्थ नगर परबतसर जीसका तब अस्तित्व ही नहीं था पिप्पलाद की सीमा में था। आज यहां परबतसर के बाजर में भू.पू. मारवाड़ राज्य में निर्मित सायर भवन हुआ हैं उससे कुछ आगे तक इसी की सीमा मानी जाती रही है, परन्तु जिसकी पिप्पलाद से आज 4 मील की दूरी हो गई है।
पिप्पलाद से दक्षिण पश्चिम के आज के गांव भी तब नहीं थे और न पूर्व में ही थें, इस ओर के वर्तमान सभी गांव इसके मौंहल्ले थे। पिप्पलाद से दक्षिण पूर्व की ओर स्थित मेहगांव पिप्पलाद को महावास पुकारा जाता था। दाधीच ब्रह्मणों की प्रचुरता इस बास में थी और आज भी दाधीच ब्रह्मणों के कतिपय गौत्र जो देश के दूर, समीप अंचलो में जाकर बस गयें है मूलत: अपने पूर्वजों को मेहगांव का निवासी बताते है। महर्षि दधिची के यशस्वी पुत्र पिप्पलाद ऋषि के नाम का कई सदियों पूर्व स्थापित पिप्पलाद ग्राम में स्थित दक्षिण पश्च्मि की पहाड़ी के जांच करने से यह ज्ञात होता हैं, कि यहां के लोगो की धारणा अनुचित नहीं हैं। यहां की पहाड़ी कभी अधिक उंची थी और अब शनै: शनै: पृथ्वी में धंरा रही है। विचित्र बात इस पहाड़ी के लिए यह भी है कि इस क्षेत्र के अन्य पहाड़ पहाडि़यों से यह नितान्त भिन्न हैं, बनावट एवं पत्थर सभी दृष्टियों से इस पहाड़ी का अन्य पहाडि़यों से सबसे निराला रूप है इस पहाड़ी पर मुस्लिम शासन काल में बनी हुई एक मस्जिद नीचे बनी हुई सड़क से दिखाई देती हैं जो सैकड़ो वर्ष पुरानी है, इस मस्जिद के दक्षिण पश्च्मि की ओर तीन तरफ से अधर एक चट्टान है जिसके नीचे गुफा हैं। यहां के लोगों में पीढीयों से यह धारणा चली आ रही है कि इस गुफा का सम्बन्ध तीर्थराज पुष्कर से है। इस गुफा में थोड़ी दूर अंदर जाने पर भगवान आशुतोष के शिवलिंग स्वरूप तथा नन्देश्वर की प्रतिमाएं जीर्ण अवस्था में दृष्टिगोचर हुई। प्रतिमाओं को पत्थर एंव बनावट की दृष्टि से आधुनिक काल की कतई नहीं माना जा सकता। पिप्पलाद में पहाड़ी पर गुफा में स्थित श्री आशुतोष की शिवलिंग स्वरूप प्रतिमा ही पिप्पलाद मुनि द्वारा सेवित है तथा पदमपुराम में वर्णित भगवान दुग्धेश्वर महादेव है। इच्छा नाड़ी के नाम से विख्यात जलाशय यहां विद्यमान है।
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